भई अपनी तो बस अब हो ली !!
धूल उड़ाना रंग लगाना
धमाचौकड़ी खूब मचाना ,
रंगो से भरी पिचकारी से
अपनों गैरों को रंग जाना,
अब कहां वो बेफिक्री के रंग
कहां अब दिल के हमजोली,
अब कहां वो बचपन की होली
वो मस्तीखोरी वो हंसी -ठिठोली!!
मां के हाथ के वो दही बड़े
घूम – घूम कर दीं भर खाना,
मालपूए के रस भरे स्वाद
संगी -सहेलियों के संग छककर उड़ाना,
आपाधापी जीवन के अब
खोने लगे वो बचपन की टोली
वो मस्तिखोरी वो हंसी -ठिठोली !!
मिलावटी रंगों पानी ने मानो
बनावटी चेहरों को धो डाले ,
दिल से मिलना हंसना गाना
अब कहां वो दिलवाले ,
कहां है अब वो दिलवाले
कहां है वो दिल की रंगोली,
भई अपनी होली तो
बस अब हो ली !!
अर्चना रॉय
प्राचार्या एवं साहित्यकार
रामगढ़, झारखंड