बसंती बंसरी
सुनो-सुनो बंसरी का शोर
नाच उठा वन मोर ….
सुरों की पिचकारी छुटी
भींगा तनमन भींगा जनजन …
पीला संयम मन झझ्कोरे
सुधि पीये बंजारा ..
सुनो सुनो बंसरी का शोर……
नाच उठा मन मोर….
दौड़ चली पीड़ा कल की
फिजाओं की तनहाई
गीतों के तालों में डोले
मन मौसम की शहनाई..
सुनो-सुनो बंसरी का शोर
नाच उठा मन मोर….
पंक्षी फुदके, डाली झूमे
झर -झर झरता
रंग गगन,उमंग बदन
उठती मृदुल हिलोर..
सुनो-सुनो बंसरी का शोर
नाच उठा मन मोर ….
डॉ आशा गुप्ता”श्रेया”
साहित्यकार एवं गायनेकोलॉजिस्ट
जमशेदपुर, झारखंड