फिर होली में
हुई आहट
खोला था जब द्वार
मिला त्यौहार ।
आया फागुन
बिखरी कैसी छटा
मनभावन।
खेले हैं फाग
वृन्दावन में कान्हा
राधा तू आना।
तन व मन
भीगे इस तरह
रंगों के संग।
स्नेह का रंग
बरसे कुछ ऐसे
छूटे ना अंग।
रंगी है गोरी
प्रीत भरे रंगों से
लजाई हुई।
आई है होली
रंगी सब दिशाएं
दिल उदास ।
पिचकारी से
रंगों की बरसात
लाया फागुन ।
परदेश में
जब होली मनाई
तू याद आई ।
अगले साल
मिलेगें अब हम
फिर होली में ।
डॉ भावना कुँअर
साहित्यकार
सिडनी, आस्ट्रेलिया