निःस्वार्थ प्रेम की दास्तान है वैलेंटाइन

निःस्वार्थ प्रेम की दास्तान है वैलेंटाइन

ये कटु सत्य है कि प्रेम मानवीय वृत्तियों का दिव्यतम रूप है।प्रेम पाषाण ह्रदय को भी पिघलाकर सरस बना देता है उसके अभाव में सब कुछ नीरस लगता है।जिस ह्रदय में प्रेम का संचार हो जाता है उसका मन मयूर की भांति नाचने लगता है।वाक़ई प्रेम एक अछूता एहसास है जो कभी भी भौतिक परिस्थितियों से आहत नहीं होता।प्रेम को मन का प्रकाश कहा गया है तो ये मन के आगे छाया अंधकार भी है।सच बताऊँ मेरी नजर में प्रकृति का अनमोल तोहफा ही प्यार है।प्रेम अक्षय तत्त्व है इसलिए वैलेंटाइन जैसे प्रेमपर्वो का महत्त्व वैश्विक तो है ही,सर्वकालिक भी है।हम प्रेमियों के एहसास को कभी नही रोक सकते।प्रेमी को सुध-बुध कहाँ?किसी शायर ने क्या खूब लिखा है—

कहाँ की शाम, और कैसी सहर
जब तुम नही होते,
तड़पता है ये दिल आठों पहर जब तुम नही होते।

एक और पंक्ति देखिए जो प्रेम की उद्दात्ता को परिलक्षित करती है–

कलम, रुमाल,कागज, खत,फूल, गुलदस्ते पड़े रहते है मेज पर जब तुम नहीं होते।ये सच है कि प्रेम करने वाले को हमेशा अपने प्रेमी का साथ चाहिए होता है,दूरियां उसे बर्दाश्त नहीं होती।प्रेमी दुर्लभतम एवं कठोरतम सीमाएं भी लाँघ जाते है।प्रेम मनुष्य को असीम आनंद की अनुभूति देता है।

अगर दुनियां की महान प्रेम कथा का विवेचन करें चाहें वे ढोला मारू ,अनारकली, दुष्यन्त शकुंतला,हीर रांझा, सोनी महिवाल,शीरी फरहाद,रोमियों जूलियट और इनसे इतर भी दिव्य प्रेम राधा कृष्ण की कथा को देखे जो प्रेमियों के मध्य बेखुदी, निर्भयता से अपना सब कुछ त्याग करने का भाव समझ पाएंगे।ये सभी प्रेम कथाएँ प्रेम के अमिट रूप को बताती है।

ये सच है व्यक्ति जिससे प्रेम करता है वह हर रूप में उसे ही देखता है उससे परे उसे कोई नजर नहीं आता।वह उसे हद से ज्यादा चाहने लगता है।हम समाज मे रहते है और विभिन्न रिश्तों की डोर में बंधे होते है,जुड़े रहते है और ये 100 % सच है कि रिश्तों को ताजगी देने का काम करतें हैं- विभिन्न डे जैसे मदर्स डे,टेडी डे,बर्थ डे,फ़्रेण्डशिप डे,वैलेंटाइन डे आदि।

वैसे तो हर नया दिन मेरी नजर में अपने आप मे एक उत्सव होता है लेकिन एक विशेष दिन को नाम से समर्पित कर हम रिश्तों में ताजगी का अनुभव करते है।
कुछ लोग वैलेंटाइन डे का रूप गलत लेते है फिर विरोध करते है।हमें इसे स्वस्थ मानसिकता से मनाना चाहिए क्योंकि आग्रह और पूर्वाग्रह रखकर प्रेम नहीं किया जा सकता।इन दोनों से परे प्रेम एक सात्विक भाव है।
मेरे मायने से ‘वैलेंटाइन डे’ प्यार का त्योहार है और इसे जरूर मनाना चाहिए क्योंकि दिन विशेष आपके अनुराग को सुदृढ़ बना देता है।हमारी जिंदगी में जिसे भी हम सर्वोपरि मानते हैं, पसंद करते हैं या हमें लगता है कि हमारा अटूट नाता है,यह रिश्ता हमें खुशी देता है ,हमारे जीने की ललक को दुगना करता है,उमंग से जीवन भर देता है चाहे वह रिश्ता बहन का या माँ-बाप का,पुत्र का,दादा का या दादी का ,दोस्ती का हो, पति का,पत्नी का हो,या प्रेमी का अपने खूबसूरत अल्फाज़ो को व्यक्त करने का दिन ‘वैलेंटाइन’ है-

मेरे दिल का है वो आना-जाना
दिल ने जिसे है अपना माना
मेरी खुशियों का है जो ठिकाना
मुझे अपने से अधिक है जिसने पहचाना
इस स्वार्थमय, घनघोर अंधेरे में निस्वार्थ
जिसने है मुझे माना
उसे समर्पित मेरा ‘वैलेंटाइन डे’
हाँ, ऐसे उस शख्स को आप वैलेंटाइन विश करें।बस अंत में इतना ही कहूंगी की प्रेम संकुचित न होकर विस्तृत है,समर्पण का भाव है,मखमली और ओस की बूंद की तरह पवित्र और सुखद अहसास है।

 

रेनू ‘शब्द मुखर ‘
साहित्यकार और समाजसेविका
जयपुर राजस्थान

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