नारियाँ
नित हौसलों के दीप जलाती हैं नारियाँ
हर फर्ज अपना हँसके निभाती हैं नारियाँ
मुश्किल में हार मानती नहीं है ये कभी
जो ठान लें वो करके दिखाती हैं नारियाँ
कमजोर इनको आप समझना न भूलकर
काँधे पे घर का बोझ उठाती हैं नारियाँ
अब लक्ष्य इनका चार दिवारी नहीं रहा
दुनिया मे नाम खूब कमाती हैं नारियाँ
हो बात चाँद की या के अन्तरिक्ष की
हर ओर पाँव अपने बढ़ाती हैं नारियाँ
कोमल हैं तन से किन्तु मन से है बहुत प्रबल
हर दर्द जमाने से छिपाती हैं नारियाँ
अपनी ख़ुशी की ये कभी भी सोचती नहीं
परिवार पर ही जान लुटाती हैं नारियाँ
जब चोट इनके स्वाभिमान पर करे कोई
तो रूप काली का भी सजाती हैं नारियाँ
संतोष धन है सबसे बड़ा जानती हैं ये
घर को सदा ही स्वर्ग बनाती हैं नारियाँ
सुख शान्ति से भरा रहे घरबार इसलिए
आँगन में दीप रोज जलाती हैं नारियाँ
रमा प्रवीर वर्मा
साहित्यकार
नागपुर , महाराष्ट्र