दुविधा’

‘दुविधा’

आज है नारी दिवस
सुबह से ही लगा है तांता
बधाई संदेशों का

पर मैं हो रही हूँ दो चार
दुविधा से
मौका खुशी का है या फिर गम का
नही कर पा रही तय मैं

जब झांकती हूँ भूतकाल में
देखती हूँ
तृप्ता , मरियम, यशोदा, जीजा बाई
होती हूॅ गर्वित
कि मैं भी हूँ माँ

इतिहास में
जब देखती हूँ रानी झांसी,
और रजिया को लेते लोहा
होता है रशक्
हूँ मैं औरत

पर इन सब के आगे
वर्तमान में लगी है
लाईन लंबी
कितनी ही ‘निर्भया’ हैं
कोई ‘गुडिया’, ‘दामिनी’ कोई

कुछ दूरी पर हैं खडी
कुछ पूरी , कुछ अधजली
शिकार दहेज की

और इन सब के साथ
कितनी ही वो
होती प्रताड़ित
नित्य प्रति जो

आज है नारी दिवस
दुविधा में हूँ
मौका खुशी का है
या फिर गम का
नहीं कर पा रही
तय मैं
नहीं कर पा रही
तय मैं

कुलविंदर चावला
साहित्यकार
पटियाला ,पंजाब

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