टिस

टिस

गर्मी की तपती धूप
सर्दी की ठिठुरन
आंधी , तूफान या
हो भीगी बारिश
हर मौसम की मार
सहता हूँ मैं बेबस
मज़दूर
क्योंकि मेहनत ही
मेरा कर्म है
वही मेरी रोज़ी रोटी
बनाता हूँ बड़े बड़े
घर, इमारतें,आलीशान
बंगले उठा टोकरे मिट्टी
ईंटो, गारे, सीमेंट के
पर खुद के रहने के
लिये होती सिर्फ टीन
या पॉलीथिन की छत
किसी सड़क किनारे
बनाता हूँ बड़े बड़े ऑफिस,
पुल, फ्लाईओवर, मॉल
पर होती नहीं दो वक्त की
रोटी भी कभी अच्छे से
पास मेरे
बाजरे की रोटी, प्याज़, पानी
से ही बस चल जाता काम मेरा
बनाता हूँ बड़े बड़े स्कूल, कॉलेज, हस्पताल
पर पलते होते बड़े बच्चे सड़कों किनारे ही मेरे
न ले पाते शिक्षा
न ही अच्छा इलाज
है देखो कैसी विडंबना
ये मेरी रचता यूँ पूरा संसार मैं
पर खुद के लिये ही जीने को
तरसता हर पल हर दिन
हर सांझ हर सवेरे ।।

मीनाक्षी सुकुमारन
साहित्यकार
नोएडा,उत्तर प्रदेश

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