“क्षितिज की लालिमा करे आह्वान”
15 अक्टूबर शरद पूर्णिमा कोजागरी लक्ष्मी पूजा के दिन बिहार के सहरसा जिले में जन्मी बच्ची को डॉक्टर ने हाथों में थामकर घोषणा की, “यह बच्ची बेहद विलक्षण, आगे चलकर पूरी दुनिया में नाम रोशन करेगी”। 2 वर्ष चार महीने की छोटी आयु में ही मां सीता के रूप झांकी में भागीदारी, साथ ही अन्यान्य अनेक झांकियों में प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत। श्रीमती इंदिरा गांधी जी की मृत्यु के तुरंत बाद ही 31 अक्टूबर 1984 में पिताजी और अन्य सभी जानने वाले अचंभित थे, जब पाँच साल की बच्ची ने पिता द्वारा दिए इंदिरा जी के विषय में लिखे कुछ पन्ने जस का तस मुँहजबानी सुना दिया, और यह सिलसिला ही चल पड़ा कितना भी लंबा लेख हो एकाध बार पढ़ कर ही उन्हें कंठष्थ हो जाता। कोई भी विषय हो, जब बच्ची माईक पर घंटो बोलती तो सामान्य एवं विशेष जन, अधिकारीगण, मंत्रीगण, हर आम व खास दांतो तले उंगली दबा लेते, प्यार से कोई मिनी इंदिरा गांधी कहने लगता तो कोई उनके पिता के चरण रज शीश लगाता। उसी दौरान एक बड़े समारोह में जिला कलेक्टर, जब बच्ची को माइक पर घंटों ईस्वियों एवं डाटा के साथ बोलते सुना तो हतप्रभ होकर उनके पिता से बच्ची को उनके निवास के कार्यालय में आमंत्रित किया, और वहाँ स्वागत करते हुए बिठाकर सवाल किया कि आपको इतनी जल्दी सब कैसे याद हो जाता है?छोटी सी बालिका ने कहा, मैं बस एक दो बार पढती हूं और वैसे का वैसा ही मुझे याद हो जाता है। फिर सरकारी काम से संबंधित चंद कागज़ बच्ची को दिया गया, जिसको उसने सिर्फ दो बार पढ़कर ही छ: पृष्ठों के कागजात को जस का तस सुनाया, तो उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही, तदोपरांत उन्होंने उज्जवल भविष्य की कामना के साथ-साथ पुरस्कार राशि के साथ प्रशस्ति पत्र आशीर्वाद एवं सम्मान स्वरूप भेंट किया, और इस तरह के ढेरों उपलक्ष आगे भी इनकी जिंदगी में आए। दिनों दिन इनकी प्रतिभा गायन, चित्रकारी, भाषण एवं अन्यान्य क्षेत्रों में निखरती चली गई। मां शारदे के आशीर्वाद से हर जगह प्रथम स्थान प्राप्त करती चली गई। प्रभावित होकर कैबिनेट मंत्री माननीय श्री लहटन चौधरी जी ने इनकी बेहतर पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की। फिर कक्षा छ: के लिए नेतरहाट बालिका विद्यालय के लिए सेलेक्ट हुईं पर बेहद ही रूढ़ीवादी परिवार से होने के कारण दादाजी ने फरमान सुना दिया कि हमारे घर की लड़कियां हॉस्टल में रहकर पढ़ाई नहीं करेंगी। सपने बिखरकर रह गए। कक्षा आठ में गर्ल्स हाई स्कूल में दाखिला फिर कक्षा नौ एवं दस में भारत स्काउट गाइड परेड के लिए कमांडर चुनी गई साथ ही एक बड़ी उपलब्धि भारत स्काउट की ओर से राज्य सरकार से पुरस्कृत हुई। समानांतर रूप से संगीत एवं पढ़ाई में अव्वल आने के साथ-साथ अपने आत्मीय व्यवहार एवं अद्भुत व्यक्तित्व से पूरे विद्यालय की चहेती बन गई।
सपना था सिविल सर्विसेज में जाने का या जज बनने का, उससे पहले ही सीरियल में अभिनय के लिए पटना से ऑफर आया, पर सख्त मिजाज पिता ने साफ मना कर दिया, इच्छा रखते हुए भी मन मसोसकर रह जाना पड़ा, कत्थक के लिए भी मना कर दिया गया। इसी दौरान जब इन्होंने ग्रेजुएशन में बस दाखिला ही लिया था, भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए भी तैयारी करनी थी। उधर गायन के क्षेत्र में सीनीयर डिप्लोमा में डिस्टिंक्शन के साथ फर्स्ट क्लास के बाद जानकारी मिली कि जब तक ग्रेजुएट न हो, गायन में प्रभाकर प्रवीण नहीं कर सकते। सो तानपुरे पर गायन का आनंद निकट भविष्य की उम्मीद में परिणत हो गया। माता-पिता ने आकर समझाया कि “बेटा जीवन का कोई ठिकाना नहीं, ना जाने कब उनका बुलावा आ जाए।” आगे कहा गया कि कल को हमें अगर कुछ हो जाता है तो आप तीनो बहने अकेली रह जाएंगी विवाह तो एक ना एक दिन करना ही होता है ना, योग्य वर देखने में भी तो समय लगेगा। सतरह अट्ठारह वर्ष की उम्रके उस दौर में, समझ नहीं पा रही थी कैसे उन्हें समझाएं कि अभी बहुत जल्दीबाजी हो जाएगी, उन्हें समय दिया जाए। आगे पिता ने कहा बेटा तुम्हारे अंदर प्रतिभा है तुम जहां भी जाओगी अपना रास्ता निकाल ही लोगी, ससुराल वाले अगर अच्छे हैं तो तुम्हारे सिविल सर्विसेज की तैयारी करने से उन्हें और भी गर्व होगा। फिर तो मम्मी पापा की प्यारी बिटिया के लिए योग्य वर ढूंढा जाने लगा । चारों ओर संदेशा भेजा गया पर पापा को अपनी चाँद सी बिटिया के लिए जल्दी कोई पसंद नहीं आ रहा था, वहीं बिटिया ने भी, साफ-साफ कहा, माँ मुझे ज्यादा अमीर लड़का नहीं चाहिए माँ, ज्यादा हाई-फाई भी नहीं, बस तन मन से साफ, सरल और सुंदर हो, मैं खुश रहूंगी।
छ: महीने के भीतर एक रिश्तेदार की तरफ से रिश्ते की खबर आई कि कहा गया, इन लोगों से अच्छा इंसान इस दुनिया में कोई नहीं हो सकता, इन्हें आपकी चांद सी बेटी के अलावा और कुछ नहीं चाहिए। पता है, एक ही बेटा है बेटी नहीं है, आपकी बेटी को बहू नहीं, बेटी मानेंगे। सुनकर माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। पर तभी लड़के वालों की तरफ से संदेशा भेजा गया कि उन्हें खून जांच में (Rh+) Factor की रिपोर्ट चाहिए। कहां पता था कि जिनको बेटी नहीं है उनको बहू के रूप में बेटी पाने के लिए खून जाँच जैसी स्थूल चीजों पर निर्भर होना होता है!
जो भी हो, चूंकि रिपोर्ट पॉजिटिव था, सो उन्होंने चंद सवालों की औपचारिकता निपटा कर रिश्ता झट से पक्का भी कर लिया। साथ ही कहा गया कि वैसे हमारे यहां कोई बंदिश नहीं बस बेटे को अपनी पत्नी से नौकरी करवाना पसंद नहीं। लड़के ने भी आगे बढ़ कर कह दिया कि उन्हें दहेज नहीं चाहिए। फिर घर पर फोन करके यह वादा लिया गया कि विदाई के समय रोना नहीं है नई जिंदगी की शुरुआत रोकर नहीं करनी चाहिए। शादी हो गई, विदाई के समय का दिया वादा याद था, रोती मां और पिता को देख कर भी हमसफर की खुशी के वास्ते आंसू रोकने की कोशिश करती रही।उन लोगों ने जल्दी-जल्दी अहले सुबह ही विदाई की मांग रखी … फिर शुरू हुआ हिंसक, अमानुषिक , बर्बर व्यवहार का अंतहीन सिलसिला। मां-बाप, पैसे, दहेज, काम आदि सभी चीजों को मोहरा बनाकर कैदियों, मजदूरों सी जिंदगी जीने को विवश किया गया, सुबह पाँच बजे से रात के एक दो बजे तक सांस लेने की फुर्सत न दी जाती थी, पति से बात करने, किसी से मिलने, मां-बाप से मिलने, बात करने, फोन करने की सख्त मनाही, खाने-पीने पहनने ओढ़ने में सिर्फ बंदीशें, लगातार पांच वर्षों की नारकीय गुलामी की जिंदगी जीते जीते 3 बच्चों की मां को उपहार में मिली बयालीस टांकों के साथ, आगे की तमाम उम्र के लिए एक बेहद अस्वस्थ कमजोर रूग्ण हो चुका शरीर, सजा ए कालापानी,अर्थात गर्भ में पल रहे एक बच्चे को ले, दो छोटे बच्चों के साथ घर छोड़कर निकल जाने का तुगलकी फरमान, एक शहर से दूसरे शहर में भटकता बंजारा जीवन, और तो और पांव के नीचे से जमीन और सर से आसमान का साया तब लगा कि हट गया हो जब, पति के लगातार रूष्ट, असंतुष्ट एवं क्रुद्ध व्यवहार के वजह की छानबीन करने पर यह पता चला कि बचपन में सिर में भयंकर चोट लगने की वजह से 11 – 12 साल उनका इलाज चल रहा था और भयंकर मनोदशा एवं शारीरिक प्रतिक्रियाओं एवं अव्यवस्थाओं से गुजरना पड़ा, विवाह के वक्त और बाद में भी उनके पास नौकरी होते हुए भी वेतन स्थाई नहीं हुआ था, हाथ में पैसे नहीं थे, आर्थिक एवं जीवन के अन्यान्य पहलुओं के मामले में माता पिता पर निर्भर और उनके बीच लगातार तनाव देखकर बड़े हुए थे और समस्त तथ्यों को छुपाकर, धोखे से शादी कर दी गई थी, जिसका परिणाम ईश्वर द्वारा विलक्षण प्रतिभा प्रदत्त लड़की को अपना जीवन बलि देकर , एक सजा के रूप में भुगतना पड़ा। आर्थिक स्थिति भी जटिल और सोचनीय होती जा रही थी, कई कई बार जान से हाथ धोने की नौबत आ गई थी। अपने बूढ़े रिटायर्ड मां बाप द्वारा भेजे गए पैसे से घर खर्च चलाना लेखिका के लिए असहनीय था उस पर इलाज के लिए तो सोचना भी व्यर्थ था। सब कुछ, सब कुछ खत्म हो चुका था एक स्त्री के जीवन से शरीर, मन, सौंदर्य, सपने, स्वास्थ्य, शिक्षा, सभी स्तंभ हिल कर चकनाचूर हो रहे थे, सिर्फ प्रबल आत्मशक्ति ही उस वक्त मार्गदर्शिका बनी, प्राणायम और ध्यान से खुद में प्राण फूंका , नयी आशा की ज्योत जलायी, गहनों के साथ-साथ घर की एक-एक वस्तुएं इस धोखे की भेंट चढ़ चुकी थी, उसी समय यें असीम साहस बटोरते हुए तीनों छोटे-छोटे बच्चों को लेकर लॉ करने के लिए साल में दो बार, तीन साल के लिए दूसरे शहर से लखनऊ आई,परीक्षा दिया और अपने कॉलेज में टॉप भी किया। पर तब अस्वस्थता के कारण बैरिस्टरी मझधार में ही छोड़नी पड़ी, हाईकोर्ट के जज की तैयारी भी बीच राह में ही आर्थिक एवं शारीरिक कारणों से छोड़ देनी पड़ी। पर ना जाने कैसे ईश्वर की कृपा इन पर खूब बरस रही थी आधी रात को खुले आसमान के नीचे बर्तन साफ करते हुए ना जाने उंगलियाँ आंगन पर कुछ लिखती जा रही थीं, फिर तो पन्ने, डायरिया, सब भरते चले गए, ये कविता ही तो थी जिसने इनमें जीने की नयी आस जगाई, अपने आप को फिर से सवारने की प्यास जगाई , ईश्वर ने हाथ जो थामकर रखा था। सालों की अस्वस्थता इतनी, कि जिंदगी जीते जी ही इन्हें कई कई बार मौत के पार चले जाने के एहसास भी कराये, पर जब वो वापस आईं तो एक नये पुनर्जन्म के एहसास के साथ। उधर इस व्यवस्था में भी हार ना मानते हुए, खुद को संभालते हुए लेखन का सफर रात को जागते हुए भी जारी रखा, लगातार 19 सालों से रातों को कार्य एवं स्वास्थ्य के कारण जागते रहने से जीवनी शक्ति में काफी गिरावट आने लगी, ध्यान से उन्होंने अपने आप को संभालते हुए, लेखन की दुनिया में तमाम प्रसिद्ध एवं सम्मान पाया, मोटिवेशनल आध्यात्मिक काउंसिलिंग द्वारा औरों के मार्ग भी प्रशस्त किये, घर पर छोटे से बजट में एक बिजनेस तीन साल पहले शुरू किया, जिससे भविष्य में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद दिख रही है जल्द ही एक और व्यवसाय के शुरुआत की तैयारी है। अगले साल फिर से फैमिली कोर्ट काउंसलर बनने का पूरा इरादा।
उनका लेखन कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं और साहित्यिक ई ज़ोन, प्रिंट और ऑनलाइन दोनों में, दुनिया भर में कविता मंचों और ई पत्रिकाओं में प्रकाशित.. इन्होंने अपनी कविताओं और गद्यों के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए .. राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय आनलाइन कविता प्रतियोगिताओं में अनेक पुरस्कारों से पुरस्कृत, पोएट ऑफ द मंथ, (गोल्ड, सिल्वर, प्लैटिनम) मेडल्स,से नवाजा गया अपनी आत्माभिव्यक्ति, दार्शनिक, सामाजिक, देशभक्ति, आध्यात्मिक,अनुभूतियों से ओतप्रोत, अपने स्वयं के जीवन के उन्मुख अनुभवों से युक्त कविताओं, विचारों एवं लेखों के लिए प्रशंसित हुईं एवं प्रशंसा पत्रों से सम्मानित भी हुईं।
सर्वशक्तिमान के गहरे प्यार ने उन्हें अपने लिए और सभी के जीने के लिए और लिखने के लिए सशक्त किया, कि जब कोई व्यक्ति वास्तव में जीवन में बाधाओं को पार करना चाहता है और काले बादलों को दूर करना चाहता है, तो पूरी कायनात और संपूर्ण ब्रह्मांडीय ऊर्जा उसके समर्थन में खड़ी हो जाती है है , उसे आशीर्वाद से सराबोर कर , इतना शक्तिशाली बनाती है कि वो एक सूर्य के रूप में, अंधकाररूपी काले बादलों का विनाश कर, उदय हो, एक नवीन जन्म ले , और एक बार फिर से, एक नए आध्यात्मिक आत्मीय पथ की यात्रा पर चल पड़े
वह विश्व बंधुत्व, मानवता, सद्भाव, अखंडता, प्यार, शांति और भाईचारे को बढ़ाने की लौ जगाती हैं, कविता उनके लिए वैसे ही है है जैसे जीवन जीने के लिए सांस लेना ।।
एक लेखक एवं कवयित्री के रूप में उनके द्वारा रचित दो हिंदी पुस्तकें “आओ नीव रखें उजाले की” और “आरोहण एक नवीन शिखर की ओर” , लगभग साठ इंग्लिश हिन्दी एवं बांग्ला राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साझा काव्य संकलनों पत्रिकाओं में कविता, लघु कथा, कहानियों के माध्यम से सक्रिय योगदान…तीन साझा काव्य संकलनों के संपादक मंडल में शामिल… उनकी तीसरी काव्य संग्रह शीघ्र प्रकाशन की राह पर।
पेंटिंग, फोटोग्राफी, गायन, खाना पकाने का विशेष शौक रखतीं है एवं प्रकृति और संस्कृति के लिए उनका आकर्षण अकल्पनीय है।
अवार्ड्स… . एशियन लिटेररी सोसाइटी की ओर से वर्ड् स्मिथ अवार्ड विजेता 2019 में द्वितीय स्थान विजेता, सिद्धि एक उम्मीद द्वारा दो बार “साहित्य सिद्धि सम्मान” से सम्मानित किया गया। .. वैश्विक सृजन सम्मान की ओर से सृजन अभिविन्यास सम्मान, प्रयाग और चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में डिस्टिंकशन से भारतीय शास्त्रीय संगीत में वरिष्ठ डिप्लोमा…. भारत स्काउट एवं गाइड की ओर से “राज्य पुरुस्कार” प्राप्त किया, प्रसिद्ध सिनेमेटिक एंथोलॉजी “फैशेज आॅफ इमोशंस में सफल भागेदारी ।हाल ही में इन्हें अर्पिता फांउडेशन मथुरा की ओर से नोबेल लाॅरेट कवि श्री रविंद्रनाथ टैगोर अवार्ड के लिए चयनित किया गया है।।
बच्चे बड़े हो रहे हैं शरीर से भी मन से भी, अब उन्हें मां की अस्वस्थता एवं दुख कतई मंजूर नहीं वह हर हाल में अपनी मां को सुंदर और पहले जैसी स्वस्थ देखना चाहते हैं पूरी दुनिया के साहित्यिक आसमान में मां की कलम की चमक से उनको उम्मीद की लौ और नई सुबह दिख रही है और मां को बच्चों के आंखों की चमक से जीने के लिए फिर से भरोसा, ताकत, संबल और नई उम्मीद.. एक दूसरे को संभालने का ऐसा उदाहरण मानो ईश्वर भी साथ खड़ा वही मुस्कुरा रहा हो, कह रहा हो बच्चों आप आगे तो बढ़ते जाओ, मैं हूं ना! इतनी सकारात्मकता देख बच्चों के पिताजी भी अपने आप में परिवर्तन महसूस कर रहे हैं पर अब सबको मिलकर अभी परिवार के अंदरूनी अनेकों आयाम रूपी पौधों को सींचना होगा, उनकी जड़ें मजबूत करनी होगी ताकि परिवार में संस्कृति, संतति, समृद्धि, साहित्य, संस्कारों की फसल लहलहा सके और अनेक निराशों के जीवन में प्राण फूंक सकें, उन्हें प्रेरणा दे सकें कि अगर वास्तव में ठान लिया जाए तो कुछ भी असंभव नहीं….
जय हिंद
बालिका सेनगुप्ता
साहित्यकार और प्रेरक परामर्शदाता
लखनऊ