उदित सत्य का सूर्य
झूठे नाम, झूठे मान, झूठी शान…
आखिर बताओ बंधु मेरे…
फिर सच की चाह क्यों…?
और सच की राह क्या.. कहां, किस ओर…?
झूठ और झूठे की…
होती क्यों जयजयकार रे बंधु..!
होती क्यों वाह वाह…!
हाथ कंगन को लुभाती आरसी…,
सच चीख चीख क्यों होता बेहाल…!
है सारे अमीरखाने खजाने झूठ के…
सच की झोपड़ी पड़ी कंगाल,…!
आदर्शों के वसीयतों के, बदलते मायने….,
झोंपड़ी की फूस, मुस्कुराती फटेहाल…!
कहो,.. सच चीख चीख क्यों होता बेहाल?
सच की ओढकर चादर, झूठ खेले आंख मिचौली…
कडवा कसैला नीम सा सच,
झूठ की कैसी मीठी मिश्री बोली…!
देखो मुखौटों की परत दर परत
उसपर चढी झूठ की रंगोली…!
झूठे वादे, झूठे इरादे,प्यादे…,
देखना संभलकर संभालना तराजू…
जीवन नैया की बागडोर…!
झूठ के पुलिंदे, ढकोसले झांसे,
बढा रहे वजन…
झूठ और झूठे की होती खेती…!
झूठ की खुलती पोल जब…
झूठ लेता है जान…
जब डोलता है ईमान …!
सच की सत्यता देती जीवन दान…!
संस्कारों का करती गुणगान…
झूठ फंसाद सब जान फंसाए…
उन्नति पर अडंगा लगाए..
जोखिम में डालती है जान…!
सच की नैया चाहे हिले चाहे डूले…
डूब न सकती बंदे इतना तू मान..!
सच पर तू हो जा कुर्बान…!
सत्यता की ताकत तू पहचान…।
झूठ के नाज नखरे नजाकत …
दिलाए द्रुत रफ्तारी शानोशौकत…
काहे की ऐसी झूठी दौलत…!
देखो धीमे धीमे बरकरार सच की बरकत …!
सोचना और निकालना जरा तुम फुर्सत…,
चंद सांसे सच की पुरवाई
और खुद को देना थोड़ी सी मोहलत…!
सच की तुला को संकल्प की कसौटी पर कसना तुम ये जान,…
जीवन के पथ पर संतुलित सधे कदम तुम्हारे…
हरेक कदम जग निरख निरख निहारे…
तेरा और औरों का जीवन संवारे…
दिलाए अहसास माने परवरदिगार का शुकराना अहसान…!
उत्तरोत्तर नवीन शिखर की छूकर ऊंचाईयां…
हो उत्थान की पराकाष्ठा
न कभीहो प्रतिशोध का अवसान..!
फूंक फूंक चलना तुम यूं सत्यता की राहों पर…
अविरल, अविचल,… अनवरत
हो उत्तम, सर्वोत्कृष्ट… सर्वोत्तम…
तेरे संसार के सार का… हर विचार आचार व्यवहार का
बहमांड के कण कण… अनु अनु में समा जाए
सत्यता की तरंगें….
करें पुनः पुनः उदय, उदय सत्य का सूर्य
नभ में प्रकाशमान हो जाए,… सत्य की उष्मा
बिखेरे गगन के परे भी सत्य का संदेश और समां…!
होकर साफ दिल, रूहानियत की मोतियों से पिरोकर तुम माला,
करना कर्म वाणी और मन से सदा सत्य का जाप…।
रखना विश्वास, जीवन अंकगणित के आएंगे अव्वल…
परिमाण, परिणाम, परिमाण… ।।
बालिका सेनगुप्ता
साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश